Chhath 2018: लोक आस्था के महान पर्व छठ पूजा जो बिहार में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है । बिहार में मनाया जाने वाला ये पर्व बेहद अहम पर्व है जो पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। छठ केवल एक पर्व ही नहीं है बल्कि महापर्व है जो कुल चार दिन तक चलता है। नहाय-खाय से लेकर उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना ही एक अलग ऐतिहासिक महत्व है।
सूर्य देव की उपासना का पर्व छठ 11 नवंबर को नहाय खाय के साथ शुरू होगा। भगवान भास्कर को पहला अर्ध्य 13 नवंबर को सायंकालीन के समय दिया जाएगा। यह पर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है।
छठ पूजा सूर्य और उनकी पत्नी उषा को समर्पित है। इस पूजा में किसी भी तरह की मूर्तिपूजा शामिल नहीं है। छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व के बारे में कई उल्लेख मिलते हैं। कहा जाता है कि छठ की पहली पूजा सूर्यपुत्र कर्ण ने की थी। वहीं यह भी माना जाता है कि यह व्रत सीता तथा द्रौपदी ने भी रखा था। आइये जानते हैं छठ क्यों मनाई जाती है और इसकी परंपरा किसने शुरू की।
महाभारत काल से हुई थी छठ की शुरुआत ऐसी कई कथाएं हैं जिसमें उल्लेख है कि छठ के त्योहार की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी। कर्ण सूर्यपुत्र कहलाए जाते हैं। वह प्रतिदिन घंटों नदी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे जिसकी वजह से वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की परंपरा प्रचलित है।
द्रोपदी में भी रखा था छठ व्रत छठ पर्व से जुड़ी एक और कहानी प्रचलित है कि जब पांडव अपना सारा राजपाठ हार गए तब द्रोपदी ने छठ व्रत रख कर पांडवों को उनका सारा राजपाठ वापस दिलवा दिया। छठ का पौराणिक महत्व छठ की कथाओं में एक और कथा प्रचलित है। कहा जाता है प्रियव्रत नाम का एक राजा था जिसकी कोई संतान नहीं थी।
फिर उस राजा को महर्षि कश्यप ने पुत्रयेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। सफलता पूर्वक यज्ञ करने के बाद उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ लेकिन वह भी मरा हुआ पैदा हुआ। कहा जाता है कि जब राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे, तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा और उसमें बैठी देवी ने कहा, मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं।
इतना बोल कर देवी ने उस मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा। इसके बाद से राजा ने इस त्योहार की परंपरा अपने राज्य में घोषित कर दी।